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विभिन्न उदाहरणों की सहायता से भारत में मिट्टी से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डालिए?

भारत में मिट्टी (Soil in India)

Ques.1.

विभिन्न उदाहरणों की सहायता से भारत में मिट्टी से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डालिए?

भारत में मृदा से जुड़ी अनेक समस्याएँ हैं जो कृषि उत्पादन और पर्यावरणीय स्थिरता को प्रभावित करती हैं। यहाँ हम विभिन्न प्रकार की मृदा समस्याओं और उनके उदाहरणों का उल्लेख करेंगे:

1. मृदा अपरदन (Soil Erosion)

समस्या: मृदा अपरदन का मतलब मृदा की ऊपरी परत का हवा, पानी या अन्य प्राकृतिक एजेंट्स द्वारा हट जाना होता है। यह समस्या कृषि भूमि की उर्वरता को कम करती है।

उदाहरण:

  • चंबल का बीहड़ क्षेत्र: राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच स्थित चंबल घाटी में मृदा अपरदन के कारण गहरे बीहड़ (गुल्ली/रैवेन) बन गए हैं। यहां की खेती योग्य भूमि अपरदन के कारण तेजी से घट रही है।
  • उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों: यहां भारी बारिश और ढलानों के कारण मृदा अपरदन हो रही है, जिससे खेती योग्य भूमि पर प्रभाव पड़ा है।

2. जल-जमाव (Waterlogging)

समस्या: यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब जल मृदा में अत्यधिक मात्रा में भर जाता है और पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती।

उदाहरण:

  • पंजाब और हरियाणा में: इन राज्यों में अत्यधिक सिंचाई के कारण जल-जमाव की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे धान और गेंहू की फसलों को नुकसान हो रहा है। विशेषकर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों में जल-जमाव एक गंभीर समस्या है।

3. मृदा लवणता (Soil Salinity)

समस्या: लवणता का मतलब मृदा में घुलित लवणों की उच्च मात्रा से है, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है।

उदाहरण:

  • गुजरात का कच्छ का रण: यहाँ का मृदा लवणता की समस्याओं से ग्रसित है। समुद्र के नजदीकी क्षेत्रों में लवणता की समस्या आम है।
  • पंजाब का मालवा क्षेत्र: यहां अत्यधिक सिंचाई से लवणता बढ़ गई है, जिससे भूमि की उत्पादकता कम हो गई है।

4. मृदा अम्लीयता (Soil Acidity)

समस्या: मृदा में हाइड्रोजन आयनों की वृद्धि से अम्लीयता बढ़ती है, जो कि पौधों की वृद्धि और उत्पादकता को प्रभावित करती है।

उदाहरण:

  • पूर्वोत्तर भारत का असम और मेघालय: इन क्षेत्रों में मृदा अम्लीयता अधिक है, जिससे चाय, रबड़ और अन्य फसलों की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

5. मृदा की पोषण कमियाँ (Nutrient Deficiency)

समस्या: कुछ मृदाओं में प्रमुख पोषक तत्वों की कमी होती है जो पौधों की स्वस्थ वृद्धि के लिए आवश्यक हैं।

उदाहरण:

  • उत्तर प्रदेश का दक्खिन क्षेत्र: यहां की मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी होती है, जिससे धान और गेहूँ की फसलों की उत्पादकता प्रभावित होती है।
  • राजस्थान: यहां मृदा में जैविक पदार्थों की कमी होती है, जिसके कारण फसलों की उर्वरता कम होती है।

6. मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)

समस्या: रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और औद्योगिक कचरों के अति उपयोग से मृदा प्रदूषित हो जाती है।

उदाहरण:

  • पंजाब का माही क्षेत्र: यहां रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अति उपयोग से मृदा प्रदूषण सामान्य है।
  • गंगा के किनारे के शहर: यहाँ औद्योगिक कचरे के कारण मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है।

7. मृदाशोधन (Soil Degradation)

समस्या: मृदा की संरचना और गुणवत्ता का क्षरण मृदा शोधन है।

उदाहरण:

  • आंध्र प्रदेश की लाल मृदाएँ: यहां मृदा संरचना का ह्रास हो रहा है, जिससे फसल की उपज कम हो रही है।
  • तमिलनाडु: यहां की कई भूमि पर अत्यधिक फसलें उगाई जा रही हैं, जिससे मृदा शोधन हो रहा है।

निष्कर्ष

मृदा की यह समस्याएँ कृषि उत्पादन और पर्यावरण दोनों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं। इन समस्याओं को हल करने के लिए सरकार और किसानों को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है, जैसे कि मृदा संरक्षण तकनीकों का उपयोग, अति सिंचाई से बचना, जैविक उर्वरकों का प्रयोग करना, और उत्सर्जन नियंत्रण। इन उपायों से मृदा की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखा जा सकता है और कृषि की स्थिरता सुनिश्चित हो सकती है।

Ques.2.

भारत में मिट्टी से जुड़े विभिन्न मुद्दों के समाधान पर विभिन्न उदाहरणों की सहायता से प्रकाश डालिए?

भारत में मृदा से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने के लिए कई तकनीकी और नीतिगत उपाय अपनाए जा सकते हैं। यहाँ हम विभिन्न मृदा समस्याओं के समाधान और उनके उदाहरणों का विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं:

1. मृदा अपरदन (Soil Erosion)

समस्या का समाधान: मृदा अपरदन को नियंत्रित करने के लिए वनरोपण, वृक्षारोपण, और ढलानों पर टेरेसिंग (Terracing) का उपयोग किया जा सकता है।

उदाहरण:

  • चंबल का बीहड़ क्षेत्र: राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित चंबल घाटी में मृदा अपरदन को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया है।
  • उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र: टेरेसिंग और कंटूर प्लाउइंग (Contour Plowing) विधियों के उपयोग से मृदा अपरदन को नियंत्रित करने के सफल प्रयास किए गए हैं।

2. जल-जमाव (Waterlogging)

समस्या का समाधान: ड्रेनेज प्रणाली का निर्माण और उपयुक्त फसल चक्र (Crop Rotation) का पालन।

उदाहरण:

  • पंजाब और हरियाणा: यहां के कृषक जल-जमाव से बचने के लिए ट्यूबवेल और ड्रेनेज नालियों का उपयोग कर रहे हैं। धान और गेहूं के स्थान पर दलहनी फसलें उगाई जा रही हैं।
  • उत्तर प्रदेश: नए ड्रेनेज सिस्टम और कटाई के समय को बदल कर जल-जमाव को कम किया गया है।

3. मृदा लवणता (Soil Salinity)

समस्या का समाधान: जिप्सम (Gypsum) का उपयोग, जल शोधन (Leaching), और नमक सहिष्णु फसलें (Salt-tolerant crops) उगाना।

उदाहरण:

  • गुजरात का कच्छ: यहाँ जिप्सम का उपयोग करके भूमि की लवणता को कम किया गया है।
  • पंजाब का मालवा क्षेत्र: जल शोधन और नमक सहिष्णु फसलों जैसे कि ज्वार, बाजरा, और कपास का उपयोग किया जा रहा है।

4. मृदा अम्लीयता (Soil Acidity)

समस्या का समाधान: चूना (Lime) का उपयोग और अम्लीयता सहिष्णु फसलें उगाना।

उदाहरण:

  • असम और मेघालय: यहां चूना का उपयोग करके मृदा की अम्लीयता को कम किया गया है। चाय बागानों में भी चूना का उपयोग किया जा रहा है।
  • केरल: चूना और अन्य अम्लीयता सुधारक का उपयोग करके कद्दू, केला, और अदरक जैसी फसलों की उत्पादन वृद्धि की गई है।

5. मृदा की पोषण कमियाँ (Nutrient Deficiency)

समस्या का समाधान: जैविक खाद का उपयोग, हरित खाद (Green Manure), और मल्चिंग (Mulching)

उदाहरण:

  • उत्तर प्रदेश: यहां नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी को पूरा करने के लिए किसानों ने जैविक खाद और गोबर खाद का उपयोग शुरू किया है।
  • राजस्थान: हरित खाद (जैसे सेंजी, धानचा) और मल्चिंग पद्धतियों का उपयोग किया जा रहा है।

6. मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)

समस्या का समाधान: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का नियंत्रित उपयोग, जैविक कृषि (Organic Farming) का प्रचार-प्रसार।

उदाहरण:

  • पंजाब: जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 'पंजाब कृषि विश्वविद्यालय' के माध्यम से फसल रोटेशन और जैविक खाद्य उत्पादन को प्रोत्साहित किया है।
  • गंगा के किनारे के क्षेत्रों: औद्योगिक कचरे के उचित प्रबंधन और जैविक कृषि को प्रोत्साहित किया गया है।

7. मृदाशोधन (Soil Degradation)

समस्या का समाधान: निःशुल्क वनस्पति (Cover Crops) का उपयोग, सतत कृषि पद्धतियाँ (Sustainable Farming Practices)

उदाहरण:

  • आंध्र प्रदेश: यहां 'सतत कृषि परियोजना' के अंतर्गत कृषक निःशुल्क वनस्पति का उपयोग करके मृदाशोधन को रोक रहे हैं।
  • तमिलनाडु: सतत कृषि तकनीकें जैसे कि 'सस्टेनेबल शुगरकेन इनिशिएटिव' (SSI) का उपयोग, जिसमें पानी की बचत और फसल की बेहतर वृद्धि पर ध्यान दिया गया है।

निष्कर्ष

मृदा समस्याओं का समाधान करने के लिए तकनीकी और नीतिगत उपायों का संयोजन आवश्यक है। उपयुक्त कृषि तकनीकें, जल प्रबंधन, जैविक खाद का उपयोग, और विद्यमान मृदा समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने से मृदा की गुणवत्ता और उर्वरता को बनाए रखा जा सकता है। इन उपायों को अपनाकर भारत में खाद्यान्न उत्पादन और पर्यावरणीय स्थिरता दोनों में सुधार किया जा सकता है।

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