संगम युग दक्षिण भारत के इतिहास के सबसे उल्लेखनीय कालों में से एक है, जो लगभग 300 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी तक चला। यह युग अपनी साहित्यिक समृद्धि, व्यापार, और सांस्कृतिक विकास के लिए प्रसिद्ध है। "संगम" का अर्थ तमिल विद्वानों की साहित्यिक सभाओं से है, जिन्होंने इस युग में तमिल साहित्य की नींव रखी। इस काल में व्यापार, राजनीति और सामाजिक संरचनाओं में भी महत्वपूर्ण प्रगति हुई, जिसने दक्षिण भारतीय संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ी।
1. साहित्य
संगम साहित्य तमिल संस्कृति का गौरव है। इसमें 2,381 कविताएँ सम्मिलित हैं, जिन्हें एत्तुथोकई (आठ संकलन) और पत्तुप्पाट्टु (दस गाथाएँ) जैसे ग्रंथों में संकलित किया गया। विषय प्रेम, युद्ध, वीरता, प्रकृति और नैतिकता तक फैले हुए थे।
2. व्यापार और अर्थव्यवस्था
संगम युग व्यापार का केंद्र था, जिसमें देशीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों व्यापार शामिल थे। कोरकई और पुहार जैसे बंदरगाह मसालों, मोतियों और वस्त्रों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध थे। रोम इस काल का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार था।
3. समाज और संस्कृति
संगम युग का समाज पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में बँटा था, जिनकी जीवनशैलियाँ अलग-अलग थीं। महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी, और कई कविताएँ उनकी बहादुरी और बुद्धिमत्ता का वर्णन करती हैं। इस काल में संगीत और नृत्य जैसी ललित कलाएँ भी फली-फूलीं।
4. राजनीतिक संरचना
संगम युग की तीन प्रमुख शक्तियाँ—चेर, चोल, और पांड्य थीं। इनका कला, स्थापत्य और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान था।
Legacy of the Sangam Age
संगम युग ने भारतीय संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ी। इस काल का तमिल साहित्य भारतीय धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है, और इस समय में स्थापित व्यापार नेटवर्क ने दक्षिण भारत की आर्थिक शक्ति की नींव रखी।
निष्कर्ष
संगम युग सांस्कृतिक और बौद्धिक उत्कर्ष का प्रतीक था। यह साहित्य, व्यापार, और सामाजिक विकास में अद्वितीय प्रगति का काल है, जो दक्षिण भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।