तेभागा आंदोलन
1940 के दशक का तेभागा आंदोलन - तेभागा आंदोलन बंगाल में भूमि अधिकारों और बंटाईदारों के अधिकारों के सवाल पर लड़ी जा रही एक प्रमुख कृषि संघर्ष थी।
पृष्ठभूमि: यह आंदोलन बंगाल में कृषि असंतोष और भूमि सुधारों की मांगों के बीच उत्पन्न हुआ, जहां किसान या बंटाईदार - बर्गादार - दमनकारी जमींदारी प्रणाली के अधीन रह गए थे।
1. बंटाईदारों का सशक्तिकरण: बंगाल में भूमिहीन किसानों के रूप में जाने जाने वाले बर्गादारों को राज्य द्वारा समर्थित अधिकारों के तहत पैदावार का बड़ा हिस्सा मिला।
2. जमींदार वर्चस्व की अनवरोधता: तेभागा आंदोलन ने कृषि उत्पादों पर जमींदारों की स्थापित श्रेष्ठता को चुनौती दी और उनके वर्चस्व पर सवाल उठाया।
3. जनसंगठन और एकता: आंदोलन ने किसान सभा के तहत बड़े पैमाने पर बंटाईदारों, किसानों और कृषि मजदूरों की भागीदारी देखी।
4. भूमि पुनर्वितरण और आर्थिक न्याय: आंदोलन ने बंटाईदारों के लिए फसल का "तेभागा" (एक-तिहाई हिस्सा) की मांग की, जो उस समय एक क्रांतिकारी मांग थी। यह दबे-कुचले किसानों के लिए आर्थिक न्याय हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, जो दमनकारी बंटाई प्रणाली के तहत संघर्ष कर रहे थे।
5. भूमि सुधार: भूमि सुधारों पर प्रभाव: यह आंदोलन किरायेदारों, विशेष रूप से बंटाईदारों के भूमि अधिकारों के लिए लड़ा।
इसने भूमि अन्यायों को चुनौती देने और हाशिए पर रहने वाले लोगों को सशक्त बनाने वाले कई पीढ़ियों के सामाजिक आंदोलनों की नींव रखी।
6. राजनीतिक जागरूकता: तेभागा आंदोलन ने ग्रामीण जनता में राजनीतिक जागरूकता फैलाने में मदद की - विशेष रूप से बंटाईदारों और किसानों में।
इसने वामपंथी आंदोलनों और समाजवादी विचारों के बीज बोए।
7. किसानों का सशक्तिकरण: तेभागा आंदोलन ने किसान संगठनों और एकता का एक उच्चतम प्रतिरूप प्रस्तुत किया।
इसने विभिन्न समुदायों और जातियों को एक बैनर के तहत एकजुट किया जो सत्ता में बैठे लोगों पर अनोखे तरीकों से प्रहार करने में सक्षम रहे।
8. सामूहिक शक्ति और चेतना: आंदोलन के कारण किसानों में शक्ति और चेतनता का विकास हुआ, जिसने उन्हें सामाजिक न्याय और आर्थिक पुनरुत्थान के लिए आगे की मांगों में सक्रिय रूप से शामिल किया।
9. महिलाओं की भागीदारी: भूमिहीन और गरीब किसानों की महिलाओं ने 'नारी बहिनी' नामक एक लड़ाकू समूह का गठन किया और इस आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई।
अंत में, तेभागा आंदोलन ने भारतीय इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी है। यह एक ऐतिहासिक आंदोलन था जिसने भूमि संबंधों, किसान सशक्तिकरण पर व्यापक प्रभाव डाला और स्वतंत्रता संग्राम की रीढ़ के रूप में खड़ा रहा। इसकी विरासत ने कई सामाजिक आंदोलनों और गरीबों के लिए आर्थिक न्याय प्राप्त करने के सुधार प्रस्तावों को प्रेरित किया है।