मौर्य साम्राज्य (321 ईसा पूर्व–185 ईसा पूर्व) भारत का पहला बड़ा और शक्तिशाली केंद्रीकृत साम्राज्य था। इसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी, और सम्राट अशोक के शासनकाल में यह अपने चरम पर पहुंचा। इस वंश ने राजनीतिक एकता, कुशल प्रशासन और सांस्कृतिक उपलब्धियों की नींव रखी।
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स्थापना और विस्तार:
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य के मार्गदर्शन में नंद वंश को हराकर इस साम्राज्य की स्थापना की। बिंदुसार के शासनकाल में यह और विस्तृत हुआ, लेकिन इसका स्वर्णिम युग सम्राट अशोक के शासनकाल में आया।
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अशोक का शासन और धम्म:
- अशोक, इतिहास के महानतम शासकों में से एक, कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म के अनुयायी बने।
- उन्होंने शांति और सद्भावना सुनिश्चित करने के लिए "धम्म" (नैतिक शिक्षाएं) का प्रचार किया।
- अशोक के शिलालेख और स्तंभ उनके प्रशासन और बौद्ध सिद्धांतों का प्रमाण हैं।
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प्रशासन:
- मौर्य प्रशासन अत्यधिक कुशल था, जिसमें एक केंद्रीकृत नौकरशाही और सुव्यवस्थित गुप्तचर तंत्र था।
- अमात्य (मंत्री) और राजुक (राजस्व अधिकारी) जैसे अधिकारी शासन की सुचारू व्यवस्था सुनिश्चित करते थे।
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आर्थिक और सांस्कृतिक उपलब्धियां:
- साम्राज्य की समृद्धि के लिए व्यापार और कृषि महत्वपूर्ण थे।
- मौर्य काल में स्थापत्य कला का विकास हुआ, जिसमें साँची स्तूप और अशोक स्तंभ शामिल हैं।
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साम्राज्य का पतन:
अशोक की मृत्यु के बाद आंतरिक संघर्षों और आक्रमणों के कारण साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर हो गया और अंततः शुंग वंश के अधीन आ गया।
विरासत:
मौर्य साम्राज्य ने शासन, सांस्कृतिक संरक्षण और नैतिक नेतृत्व का एक स्थायी उदाहरण प्रस्तुत किया। इसकी एकता और अहिंसा पर जोर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहा।