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तमिल संस्कृति का स्वर्णिम काल

संगम युग (300 ईसा पूर्व - 300 ईस्वी) दक्षिण भारतीय इतिहास का एक अद्भुत काल है, जो अपनी समृद्ध साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक प्रगति के लिए जाना जाता है। तमिलनाडु में केंद्रित, इस युग ने तमिल भाषा, कला और क्षेत्रीय परंपराओं को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

संगम युग की प्रमुख विशेषताएं

  1. संगम साहित्य

    • इस युग का नाम संगम सभाओं से लिया गया है, जहां तमिल कवि एकत्र होकर काव्य रचना करते थे।
    • संगम साहित्य में तोल्काप्पियम, एत्तुथोकाई, और पत्तुपट्टु जैसे महान कृतियां शामिल हैं, जो प्रेम, युद्ध और दैनिक जीवन को दर्शाती हैं।
  2. समाज और संस्कृति

    • समाज को पाँच भौगोलिक परिदृश्यों (तिनै) में विभाजित किया गया था: कुरिंजी (पहाड़), मुल्लई (जंगल), मरुतम (कृषि भूमि), नेयदल (तटीय क्षेत्र), और पलई (रेगिस्तान)।
    • महिला कवियों, जैसे अव्वैयार, ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो इस युग की समावेशी प्रकृति को दर्शाता है।
  3. आर्थिक समृद्धि

    • कृषि और व्यापार अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार थे। पुहार (आधुनिक कावेरीपट्टिनम) जैसे बंदरगाह रोम, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य-पूर्व के साथ समुद्री व्यापार के प्रमुख केंद्र थे।
    • मसाले, वस्त्र और मोती मुख्य निर्यात वस्तुएं थीं।
  4. राजनीति और प्रशासन

    • संगम युग में तीन प्रमुख वंशों का प्रभुत्व था: चेर, चोल, और पांड्य।
    • इन शासकों ने कला, साहित्य और व्यापार को संरक्षण दिया, जिससे एक समृद्ध सांस्कृतिक और आर्थिक वातावरण विकसित हुआ।
  5. कला और वास्तुकला

    • अधिकांश साक्ष्य साहित्यिक हैं, लेकिन भव्य मंदिरों और किलों का उल्लेख महत्वपूर्ण वास्तु उपलब्धियों का सुझाव देता है।
    • संगीत और नृत्य, विशेषकर भरतनाट्यम, तमिल संस्कृति में गहराई से रचे-बसे थे।

निष्कर्ष
संगम युग तमिलनाडु की समृद्ध विरासत और भारतीय संस्कृति में उसके योगदान का प्रमाण है। इसका साहित्य और सांस्कृतिक परंपराएं आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं और तमिल लोगों तथा व्यापक भारतीय समुदाय के दिलों में विशेष स्थान रखती हैं।

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