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भारत के उपराष्ट्रपति भूमिका, शक्तियां और महत्व

भारत के उपराष्ट्रपति देश के दूसरे सबसे उच्च संवैधानिक पदाधिकारी हैं। भारतीय राजनीतिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में, उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं और विधायी व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। इस लेख में, हम उपराष्ट्रपति के चुनाव, शक्तियों और भारतीय लोकतंत्र में उनके महत्व पर चर्चा करेंगे।


उपराष्ट्रपति का चुनाव

भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें शामिल हैं:

  1. संसद के दोनों सदनों के सदस्य।
  2. यह चुनाव गुप्त मतदान के माध्यम से सिंगल ट्रांसफरेबल वोट प्रणाली का उपयोग करके किया जाता है।

पात्रता मानदंड

  • भारत का नागरिक होना चाहिए।
  • कम से कम 35 वर्ष की आयु हो।
  • राज्यसभा का सदस्य बनने के योग्य हो।
  • सरकार के तहत कोई लाभ का पद नहीं होना चाहिए।

उपराष्ट्रपति की भूमिका और शक्तियां

  1. राज्यसभा के पदेन अध्यक्ष:

  2. कार्यवाहक राष्ट्रपति:

    • राष्ट्रपति की अनुपस्थिति, इस्तीफा, हटाए जाने या मृत्यु की स्थिति में राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते हैं।
  3. सलाहकार:


उपराष्ट्रपति का महत्व

  1. विधायी संतुलन: राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में प्रभावी कार्य सुनिश्चित करते हैं।
  2. राष्ट्रपति का समर्थन: राष्ट्रपति के भरोसेमंद सहायक के रूप में कार्य करते हैं।
  3. नेतृत्व की निरंतरता: राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में स्थिरता प्रदान करते हैं।

चुनौतियां और आलोचना

  1. वास्तविक शक्तियां सीमित होती हैं, जब तक कि वे राष्ट्रपति के रूप में कार्य नहीं करते।
  2. अधिकारों का उपयोग करने में सरकार और संसद पर निर्भरता।

भारत के उपराष्ट्रपति के बारे में रोचक तथ्य

  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति थे, जो बाद में राष्ट्रपति बने।
  • उपराष्ट्रपति का आधिकारिक निवास मौलाना आज़ाद रोड, नई दिल्ली पर स्थित है।

निष्कर्ष
भारत के उपराष्ट्रपति देश की शासन व्यवस्था और विधायी प्रणाली में एक अनूठा और महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। हालांकि यह पद मुख्य रूप से औपचारिक है, राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में उपराष्ट्रपति की भूमिका और आपात स्थिति में राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने की क्षमता उन्हें भारतीय लोकतंत्र के लिए अपरिहार्य बनाती है।

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